Wednesday, November 28, 2012

Yun Hi...!!

अगर वो खफ़ा हैं हमसे तो खुद आकर कहें।

यूँ  ही ख़ामोशी का अहसान क्या लेना।।


Thursday, October 11, 2012

Sardiyaan !!

Gulabi jaada..
Sheet lahar...
Kohre ki doodhiya chaadar...
Aur ek alag kism ka surkh ehsaas...
Tum agar yahan hote to kahte.....Chalo dhoop me baith kar adrak wali chai peete hain.

Friday, August 24, 2012

Uska Intezaar Khatm Hua...!!

अचानक उसे अपने सामने देख कर थोड़ा हिचकिचा सी गयी थी शिवानी. इतने सालों में कभी सुध भी ना ली थी उसने पलट कर, फिर आज अचानक से क्यों आ गया वो उसके सामने ? ऐसे कई सवालों के बादल आ-जा रहे थे शिवानी के अन्तर्मन में...पुरानी तस्वीरें जैसे जीवित हो उठी थी...ऐसा लग रहा था जैसे कल की ही बात हो। 10 साल हो चुके थे इस बात को, मगर उस घटना ने उसे कभी चैन से नहीं रहने दिया....ऐसा नहीं है की शिवानी ने उसे भुलाने की कोशिश नहीं की थी, पर वो चाह कर भी ऐसा कर ना पायी थी। एक बार तो मन  किया की उसे पहचानने से इनकार कर दे, पर ये इतना आसान भी तो नहीं था उसके लिये....बमुश्किल सिर्फ  मुस्कुरा पायी थी। बड़ी मुश्क़िलों के बाद उसने अपने मन के बिखरे हुए टुकड़ों को समेट पाया था.... कितने ख़त, कितनी कोशिशें....पर कोई ज़वाब नहीं दिया था उसने. ऐसा लग रहा था जैसे वो बस छुटकारा पाना चाहता था।
फिर आज क्यों?  

शिवानी हमेशा से अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीती आई थी, बहुत जिंदादिल लड़की थी वो। बचपन  से लेकर कॉलेज तक उसने हर पल को जिया था। घर पे सबकी लाडली, और सबसे ज्यादा अपनी दादी के करीब थी वो। पेंटर बनना चाहती थी, अपने कमरे को बड़े प्यार से सजाया था उसने, लेकिन उस वक़्त 'पेंटर ' होना कोई करियर नहीं हुआ करता था। घर वालों को लगता था की वो graduate  हो जाये फिर कोई अच्छा लड़का देख कर उसकी शादी कर देंगे। एकलौती बेटी थी वो अपने घर की, तो सबके बड़े अरमान भी थे उसकी शादी को लेकर। पिता जी ख़ानदानी रईस थे, तो रूपये-पैसे  की कोई तकलीफ नहीं थी। जैसे-जैसे उसके graduation के exams पास आ रहे थे, घर वालों की अच्छे लड़कों की तलाश बढती जा रही थी, और शिवानी की पेंटर बनने  की चाह भी। शिव अच्छा ख़ानदानी लड़का था, और घर वालों को उसका घर-परिवार भी पसंद था। इधर शिवानी अपनी ख़ास सहेली के घर जाकर पेंटिंग किया करती थी, क्योंकि आजकल उसका दूर का भाई (आशीष )आया हुआ था जिसने किसी बड़े कॉलेज से fine arts की पढाई की थी। शिवानी की तो मानो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी उसके आने से। शिवानी बड़ी मेहनत से पेंटिंग की बारीकियां समझती और आशीष उसके इस चाव को खूब बढ़ावा देता। शिवानी अच्छी पेंटर थी, उसने कम दिनों में ही बड़े अच्छे से पेंटिंग करना सीख लिया था। उसकी जिद्द थी की वो पहले अपना अस्तित्व बनाएगी एक अच्छी पेंटर बनकर उसके बाद ही शादी के बारे में सोचेगी, पर घर वाले उसकी इस जिद्द को बचपना मानकर बैठे थे। आशीष की छुट्टियाँ ख़त्म  हो चली थी, वो भी वापिस जाने की तैयारी में था। पर जैसे -जैसे उसके जाने का दिन पास आता जा रहा था, उसे शिवानी की कमी महसूस होती जा रही थी, जो कि खुद उसके लिए भी असहज था, क्योंकि ये तो शुरू से ही साफ़ था की वो उसे सिर्फ पेंटिंग सिखाएगा, और ये तो कुछ और ही था। आशीष को पता था की शिवानी बड़े घर की लड़की है, ऐशो-आराम में पली-बढ़ी, उसका और आशीष का कोई जोड़ न था। फिर भी ये बात  समझाने पर भी उसके दिल को समझ में नहीं आ रही थी। शिवानी को वो अच्छा लगता था पर उसने कभी प्यार-व्यार के बारे में नहीं सोचा था। आशीष के अन्दर एक तूफ़ान चल रहा था दिल और दिमाग के बीच, फिर अंततः दिल की जीत हुई, और उसने शिवानी से अपने दिल की बात कह देने का फैसला किया। उस शाम एक अजीब सी शान्ति थी, शिवानी चहकती हुई आई और उसने अपना canvas और colours निर्धारित जगह पर लगाये और पेंट करना शुरू कर दिया। आशीष अभी भी शांत था, फिर वो आगे बढ़ा और शिवानी के हाथ को पकड़ कर उस ब्रुश से स्ट्रोक्स देने लगा, शिवानी का ध्यान स्ट्रोक्स से हट कर आशीष के स्पर्श पर था। दोनों का ध्यान पेंटिंग पर नहीं था। अचानक जैसे सब कुछ थम गया था, फिर आशीष ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और अपने दिल की बात कह दी। शिवानी के लिए ये सब कुछ इतनी जल्दी हुआ था कि उसके लिए कुछ भी कह पाना मुश्किल था। फिर शिवानी 4-5 दिनों तक पेंटिंग करने नहीं आई, आशीष ने उससे मिलने के लिए कुछ ख़ास कोशिश भी नही की थी, उसे लगा था की शायद शिवानी को ये बात अच्छी नहीं लगी। उधर हर वक़्त धमाचौकड़ी मचाने वाली शिवानी एकदम शांत हो गयी थी। काफी सोचने के बाद उसने ये फैसला लिया था। वो अपनी दादी के पास बैठी थी, उसने उन्हें सब कुछ बता दिया था कि वो आशीष के साथ रहना चाहती थी, शादी करना चाहती थी। उसके घर में ये बात सहज नही थी, दादी ने उसे समझाया था की ऐसा कभी भी नही हो पायेगा, पर अब शिवानी किसी और के साथ जिंदगी नही बिता सकती थी, ये उसका अपना फैसला था। अगले दिन वो आशीष से मिली थी पर उसके घर पर नहीं, आशीष उसके हामी भरने से झूम उठा था। पर शिवानी ने एक वादा लिया था उससे की वो अपनी आगे की पढाई पूरी करके आएगा और उसके पिता जी से उसका हाथ मांगेगा। आशीष ने वादा पूरा करने की तसल्ली भी दी थी। फिर काफी दिनों तक आशीष से ख़त के ज़रिये बात होती रही। इधर शिवानी पर घर वालों का दबाव बढ़ता ही जा रहा था, शिवानी ने कई ख़त लिखे आशीष को बुलाने के लिए, पर अब उन् खतों का जवाब आना बंद हो गया था। शिवानी ने इन  दिनों अपने घर पर साफ़ कह दिया था की वो आशीष का इंतज़ार करेगी, एकलौती बेटी होने के कारण कभी किसी ने कोई बात थोपी नहीं थी उस पर। दिन....महीने...और साल गुज़र गए, पर वो वापिस नहीं आया, शिवानी ने अपनी कड़ी मेहनत से पेंटिंग्स में अच्छा नाम कमाया था। बड़े बड़े शहरों से लेकर विदेशों तक उसकी पेंटिंग्स के चर्चे थे। आशीष के साथ बनायीं हुई उसकी आखिरी  पेंटिंग आज भी अधूरी ही थी। इतने सालों में वो 'यकीन' होने का  दावा तो नहीं पर उससे मिलने की  'उम्मीद' होने का दावा कर सकती थी। मगर धीरे -धीरे ये 'उम्मीद' होने का दावा भी खोखला होने लगा था। शिवानी ने काफी नाम और शोहरत कमाया था और आज वो एक नामी-गिरामी पेंटर थी। मगर उसका दिल आज भी खाली था, और दिमाग एकदम शांत और सधा हुआ।

आशीष को सामने देख कर उसे 'वो' ख़ुशी नही हुई जो कभी उसने सोची थी। आशीष किसी काम के सिलसिले से आया था......शिवानी मुस्कुरायी थी और मन से आवाज़ आई थी की 'आज भी वो उससे मिलने नही आया था'. आशीष ने सोचा था की वो उससे सवाल और कारण पूछेगी, पर ऐसा कुछ भी नही हुआ। शिवानी अब वो पहले  वाली शिवानी नही थी, वो अब बहुत गहरी और  सधी हुयी सोच की मालकिन थी। वहीँ खड़े- खड़े ही शिवानी ने उससे विदा ली और आगे बढ़ गयी....पर इस बार वो इंतज़ार ख़त्म हो गया था।




Tuesday, February 14, 2012

Delhi....The City I Am In Love With !!

Aah...I am back after quite long time :)

So, its been four years in Delhi now. Delhi...a city full of fun, love, adjustment, compromise, freedom, crowd, adventure, and much much more. Initially when I came to Delhi, i was not so excited due to the fear of missing my family, home & friends a lot. I have been in Lucknow for around 2 years, but the feeling was 'Near Home'. But this time a very new place, new people and out of all those new people I had to decide whom to be friend and whom not to be. Luckily...I made right choices about friends, professionals, and career of course :).

When I came to Delhi, I was just a 'Graduate' from a small city of UP. I earned MBA, then selected a good profession. I have worked with the top brands of this industry. All I have achieved with the support and love of my family, friends and all the awesome people around me. I am glad I completed these years with respect and dignity. I am a successful professional, a good friend (think so) and a 'Dilli-waasi'. I learned so many things in this city. Its amazing place to be....people are wonderful, of course if you make the right choice.

Love you Delhi...thank you for all the learning.