Tuesday, June 12, 2018

तुम मुझे बहुत अधूरा सा छोड़ गए....


तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए,
तुम मिले थे मुझसे पहली दफ़ा जब,
तो एक ख़ालीपन था तुम में,
वो ख़ालीपन तुमने भर लिया मुझसे,
और मुझे ख़्वाबीदा नींद में छोड़ गए,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

लम्हे कई गुज़ारे हमने साथ में यूँ तो,
बातें बयान की थी जहाँ भर की साथ में,
उन तमाम यादों की भारी गठरी,
तुम मेरी अल्मारी में ख़ुद ही रख गए,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

बेबाक़ी का जो आलम था,
मुझसे मुलाक़ात करने पर,
उस दिन मुख़ातिब होके मुझसे,
दो अल्फ़ाज़ भी ना कह सके,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

नहीं है इंतज़ार मुझे तेरे आने का,
ना ही कोई ग़िला है तेरी बेरुख़ी से,
जो कुछ भी मुझमें बाकी था,
सब कुछ, तुम साथ ले गए,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

मेरी जीस्त का वो ख़ुशनुमा पल,
तुमने ही दिया था मुझे आग़ोश में भर कर,
जाओ तुम्हें उस पल के बदले,
ख़्वाब उम्र भर के दे दिए,
मगर फिर भी इतना तो कहूँगी,

कि तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए।