हम बातचीत नहीं करते अब, बहस करते हैं।
ख़ुद को सही साबित करने की हर कोशिश करते हैं।
फिर चाहे वो किसी का दिल दुखा कर हो या दोस्ती तोड़कर।
हमें तो बस ख़ुद से मतलब है, और यही जीने की नयी रीत है।
क्या हो जाएगा अगर हम अपनी बात साबित ना करें तो?
क्या हो जाएगा अगर हम तर्क में हार जाएँ तो?
कितनी बार हमने दूसरे की पूरी बात सुनी?
कितनी बार हम ग़लत साबित होने पर हंस पड़े?
कब हमने बहस को हँसी में उड़ाते हुए दोस्त को गले लगाया?
कब हमने अपनी ग़लतियों को सबके सामने माना?
हाँ, हम शिकायतें करने से नहीं चूकते,
और ना ही दूसरों की कमियाँ गिनवाने में कोई कसर छोड़ते।
बस यही किया है हमने ताउम्र,
और शायद आगे भी करते रहेंगे।
क्योंकि यहाँ फ़ुरसत ही नहीं है कि,
दो पल थमे और सोचे की हम कहाँ हैं, क्यूँ हैं, क्या कर रहे हैं?
भेड़चाल है, सब बस चले ही जा रहे हैं।
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