Tuesday, July 10, 2018

पिघल जाता हूँ मैं....

याद आती है मेरी?
बोलो....चुप क्यूँ हो?
अच्छा रहने दो....आज तुम सुनो।
और डबडबायी आँखों से मत देखा करो,
पिघल जाता हूँ मैं।
तो तुमने फ़ैसला कर लिया?
देखो, अगर जवाब ना देना हो,
तो आँखें झुका लेना।
सच पढ़ लेता हूँ मैं इनमें।
मेरी तरफ़ देखोगी तो झूठ पकड़ जाएगा,
और मैं तुम्हें झूठा नहीं होने दूँगा।
इसलिए नज़रें झुका लेना, मैं समझ जाऊँगा।
हाँ, तो फ़ैसला कर लिया जाने का?
मुझे तो छोड़ ही दिया, क्या यादों को भी भुला दिया?
दो लोगों को हाथ पकड़े हुए देख कर,
तुम्हें याद आती है मेरी?
सुनो, रोना नहीं, मैं ज़्यादा सवाल नहीं पूछूँगा।
और....घर पे बताया किसी को?
या मेरा कोई ज़िक्र ही नहीं है?
अच्छा छोड़ो...तुम ठीक हो?
नहीं, हाथ मत पकड़ो मेरा,
तुम्हारी छुअन को गहरा महसूस करता हूँ,
धड़कनों का हाल जान जाऊँगा,
हाँ, हाथ मत पकड़ो मेरा।
तो आज सिर्फ़ रोओगी?
कुछ कहे बिना ही चली जाओगी?
नहीं, डबडबायी आँखों से मत देखो।
पिघल जाता हूँ मैं....


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